मध्यप्रदेश

पूर्वजों की आत्मा शांति का मार्ग पितृपक्ष और उनके तर्पण श्राद्ध कर्म पर विशेष आलेख।।

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संतोष गंगेले कर्मयोगी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार, नौगांव जिला छतरपुर मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9893196874

पूर्वजों पितृपक्ष या श्राद्ध कर्म तिथि पर हम जो सनातन संस्कृति के अनुसार पितृपक्ष तर्पण विधि करते समय हमें आत्मा के देवताओं को याद करना होता है जिसका नाम आर्यन और अर्यमन किसी विधि करने के पहले लेना आवश्यक होता है । तभी हमारे पूर्वजों वंशज हमारी धार्मिक क्रिया को स्वीकार करते हैं ।

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भारत की सनातन संस्कृति अनादि काल से आध्यात्मिकता धर्म शक्ति और अहिंसा का मार्ग दिखाती है । भारत विश्व गुरु माना जाता है इसलिए भारत भूमि प्रकृति के संचालन करने वाले आदर्श शक्ति जिसे हम देख नहीं सकते हैं उसे शक्ति को ही हम परमपिता परमेश्वर ईश्वर और भगवान के रूप में संबोधित करते हैं ।

संसार को संचालित करने के लिए परमपिता परमात्मा प्रकृति ने जीवात्मा की सृष्टि की रचना की है और जीवात्मा को जीवन जीने के लिए प्रकृति ने जो नियम निर्धारित किए हैं उनके अनुसार चलने पर जीवात्मा संसार के विभिन्न प्रकार के जीव जंतु पशु पक्षी जलचर, थलचर, नभचर जिसे हम समुद्र तल पृथ्वी और आकाश के रूप में देखते हैं सृष्टि की संरचना में तीन लोकों का वर्णन आया है, तीन लोक की रक्षा के लिए ब्रह्मा विष्णु और महेश सृष्टि परमात्मा के अंश स्वरूप में प्रकट हुए हैं जो संसार के सभी जीवो पर नियंत्रित करते हैं । मां लक्ष्मी पार्वती और मां सरस्वती इस शक्ति स्वरूपा के रूप में बंदिनी पूजनीय अद्भुत शक्ति के रूप में जिनकी तुलना और कल्पना करना किसी मानव के मां कर्मा वाणी विचार से दूर है ।

भारत सहित संसार के जितने भी जीव जंतु पशु पक्षी अन्य जीव है सभी जीवो के ऊपर सभी शरीर काया देह को सर्वोपरि मानव किया मानव शरीर मानव देख पूजनीय वंदनीय माना गया है। मानव शरीर की आत्मा में परमात्मा का निवास होता है इसलिए प्रकृति की सबसे सुंदर किया मानव किया है ।

मानव शरीर की संरचना इसका निर्माण कार्य करने की शक्ति क्षमता ईश्वर ने अपने सामान मानव को प्रदान कर दी हैं और इसीलिए परमपिता परमेश्वर परमात्मा भी मानव काया शरीर के रूप में शरीर के रूप में विभिन्न प्रकार के अवतारों से माध्यम से संसार की सृष्टि को संचालन कर रहा है ।

जो जीवात्मा मानव शरीर प्राप्त करने के बाद प्रकृति के विरुद्ध या किसी अन्य जीव जंतुओं के लिए अपनी शक्ति के वल बुद्धि ज्ञान क्षमता के कारण अन्याय अत्याचार प्राणियों का नरसंहार करता है  । उसकी शक्तियां समाप्त होती हैं और वह पाप दुराचार अन्य अत्याचार करना शुरू कर देता है , यहीं से मानव जीवात्मा को संकट में डाल देता है ।

जीवात्मा या किसी दूसरी जीवात्मा जिसमे परमात्मा का अंश विराजमान होता है उसको प्रताड़ित करता है परेशान करता है प्रकृति उससे कष्ट भोगने के लिए प्रेत आत्मा योनि में परिवर्तन कर देता है शरीर छोड़कर आत्मा भटकती है परेशान होती है कष्ट उठाती है अत्यधिक अन्य अत्याचार करने वाली जीवात्मा सूक्ष्म आत्मा में स्थान प्राप्त कर लेती है

जीवात्मा प्रेत आत्मा और सूक्ष्म आत्मा तीन श्रेणियां प्रकृति की सृष्टि की संचालन की गति है।

पितृपक्ष जिससे विभिन्न भाषा प्राप्त है हम कहां से उत्पन्न होकर जन्म लेकर मनुष्य मानव से महापुरुषों तक स्थान प्राप्त करते हैं ।

मनुष्य जब परमपिता ईश्वर के प्रति श्रद्धा विश्वास और भक्ति के साथ तपस्या समर्पण समाधि जब तक के माध्यम से सांसारिक मोहित त्याग कर ईश्वर पर ध्यान लगता है तो वह तपस्वी   ऋषि मुनियों की संतानों के रूप में कुल वंश का निर्माण करता है। सृष्टि की संचालन गति का इतिहास नहीं मिल रहा और भविष्य में खोज भी नहीं की जा सकती है क्योंकि प्रकृति पूर्ण रूप से पूर्णानंद है ।  सभी जीवात्माएं अपूर्ण हैं । परम शक्ति परमात्मा अनादि अनंत काल से सृष्टि का संतुलन बनाए रखती है । इसलिए पूर्ण के बारे में उसे सकारात्मक रूप देने के लिए धर्म आध्यात्मिकता का रास्ता से चलकर हम मोक्ष की ओर बढ़ते हैं हर जीवात्मा जीव यही आशा करता है कि कभी हमें किसी प्रकार का कष्ट ना हो सुख शांति समृद्धि हमारा मान सम्मान प्रतिष्ठा सुख शांति समृद्धि प्राप्त हो लेकिन प्रकृति द्वारा बनाए गए नियम को तोड़ने में मनुष्य सबसे पहले जीव मना गया है।

मानव शरीर धारण करने वाली जीवात्मा परमात्मा प्रकृति के नियम तोड़कर जब माया मोह और स्वागत का रास्ता तय करता है पाप का भारी बनता है पाप का भोगने के लिए उसे प्रेत आत्मा में योनि प्राप्त होती है प्रेत आत्मा शरीर छोड़ देती हैं आत्माएं भटकती हैं और वह सच आत्माएं अपने कुल वंश पुत्र पुत्री पत्नी परिवार को सबसे ज्यादा संकट तो कष्ट में डालता है ऐसी भी प्रेत आत्माएं जिनके परिवार नहीं होते हैं या दुष्ट आत्माएं अत्यधिक पाप करती हैं वह अन्य किसी भी मानव जीव धारण को कष्ट परेशानी में डालते हैं भले ही वह किसी को दिखाई नहीं देती हैं लेकिन संसार में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से मानव को कष्ट देती हैं कभी-कभी प्रेत आत्माएं सुख आत्माएं घर परिवार परिजन रिश्तेदारों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों शारीरिक को मानसिक कष्ट प्रदान करती हैं ।

जीवात्मा प्रेत आत्मा सूक्ष्म आत्मा को मोक्ष प्रदान करने के लिए वेद पुराण शास्त्रों उपनिषद धार्मिक ग्रंथो यज्ञ हवन पूजन श्रीमद् भागवत कथा अन्य धार्मिक आयोजन के माध्यम से पुनः मानव जीवन प्राप्त करने के लिए अनुष्ठान आदि कार्यक्रम कराए जाते हैं उन्हें कार्यक्रम को वर्ष में एक बार पितृपक्ष के रूप में क्वार मां के श्री कृष्ण पक्ष पूर्णिया से 16 दिवस तक अमावस्या तक पितृपक्ष अपने पूर्वजों पुरखों को प्रेत आत्मक योनि से मोक्ष दिलाने के लिए विभिन्न प्रकार की धार्मिक गतिविधियों की आयोजन करते हैं जिसे तर्पण श्रद्धा के नाम से जाना जाता है।

पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ पूर्णिमा से हो चुका है और यह 16 दिन तक लगातार चलता रहेगा इन दिनों में हम अपने पूर्वजों को अनादि अनंत काल से जिनके बारे में हमें जानकारी भी न होने पर भी हम उनकी जीवात्मा प्रेत आत्मा सूक्ष्म आत्मा जो मृत्यु लोक संसार सागर में भटकती रहती है उसको मोक्ष का रास्ता प्रदान करने के लिए श्राद्ध तर्पण जिस प्रकार से आध्यात्मिकता धर्म के क्षेत्र में हमारे धार्मिक शास्त्रों धार्मिक ग्रंथो में उल्लेख किया गया है लिखा है उसके माध्यम से मोक्ष के रास्ते लेजाते हैं।

इसलिए वर्तमान में अपने पूर्वजों को प्रातः काल 5:00 सुबह उठकर नित्य क्रिया करके स्नान ध्यान के साथ सबसे पहले तुलसी पौधे पर पीपल बरगद के वृक्ष को और बेल वृक्ष पर जल का प्रभाव करें । सूर्य भगवान की ओर जल का प्रभाव करते समय काला तिल या उर्दू या मूंग की दाल के दाने के साथ पुष्पांजलि श्रद्धांजलि अर्पित विधि अनुसार करने के बाद धूप दीप पुष्प मीठा मिष्ठान के साथ साफ शुद्ध बर्तन या केला, बरगद, छेवला , पपीता के पत्तों के दोनों में खीर पूरी प्रसाद मिष्ठान का भोग लगाकर गाय को कौवा को कुत्ते को दे देना चाहिए खिला देना चाहिए घर में जो ब्राह्मण कर्मकांडी हो धर्म का ज्ञान रखता हो ऐसे ब्राह्मणों का 16 दिनों तक प्रतिदिन अपने घर में एक ब्राह्मण का भोज कर सकते हैं तिथि पर 5, 11 ,21 ब्राह्मणों के भजन दान दक्षिणा वस्त्र दान कर सकते हैं ।

अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विभिन्न शास्त्रों में स्थान दिया गया है कि अपने घरों पर तुलसी के पौधों का रोपण करें अपने खेत खलिहानों सार्वजनिक। स्थान पर पीपल और बरगद के पेड़ों का वृक्षारोपण पौधा रोपण करें धन-धान्य से मजबूत व्यक्ति गौ सेवा जल सेवा कन्या भोज कन्या विवाह में मदद करना , रोजी पीड़ित,अनाथ पीड़ित परेशानो की मदद करना, जलाशय के स्थानों कुआं बाबरी तालाब का जीणोद्धार कर देना चाहिए जिससे कि जीव जंतु पशु पक्षी सभी का कल्याण होगा ।

पितृपक्ष के माध्यम से अपने पूर्वजों को उनकी आत्मा को शांति के लिए भारत की विभिन्न स्थानों पर पावन पवित्र जलधाराएं नदियां प्रभावित हो रही हैं ऐसे स्थान पर पहुंचकर पिंडदान करके विधि अनुसार ब्राह्मण के पंडितों के माध्यम से आत्मा शांति हेतु विभिन्न प्रकार की विधि अनुसार मोक्ष प्रदान कराया जा सकता है ।अर्यमा पितरों के देवता हैं । पितरों या पूर्वजों को नदी तालाब या ग्रह स्नान के बाद जल देने की प्रथम है इसलिए यह नाम अर्यमा या अर्यमन नाम लेकर तर्पण श्रद्धा विश्वास और भक्ति के साथ करना चाहिए ।
उनका नाम लिए बगैर पितरों का तर्पण नहीं होता है इसलिए अर्यमा नाम जपते रहना चाहिए ।

अर्यमा, कश्यप ऋषि और आदिति के पुत्र हैं । इन्हें अर्यमन भी कहा जाता है ।

हमारे धार्मिक वेद पुराण शास्त्रों में मानवता को सर्वोपरि स्थान दिया गया है जीवो पर दया करना किसी को दुख नहीं पहुंचाना अन्याय अत्याचार दुराचार पापों से बचने का मार्ग दिखाया गया है आत्म बल आत्मविश्वास आत्मरक्षा के लिए शक्ति और बाल का प्रयोग करना चाहिए हमारे वेद पुराण शास्त्रों में शास्त्र के साथ शास्त्रों का भी संग्रह और उनका समय पर आत्मकथा के लिए उपयोग करने का भी महापुरुषों ने संदेश दिया है उसका भी हमें वर्तमान समय में ध्यान रखें जीवन जीना चाहिए ।

लेखक -संतोष गंगेले कर्मयोगी नौगांव बुंदेलखंड जिला छतरपुर मध्य संपर्क नंबर  9893196874

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