जिले में बर्ड फ्लू के खतरे के बीच चिकन दुकानों को 3 महीने के लिए बंद करने का प्रशासन का आदेश, विक्रेताओं ने उठाए सवा
जिले में बर्ड फ्लू के प्रकोप को लेकर प्रशासन ने चिकन दुकानों पर तीन महीने के लिए ताला लगाने का फैसला किया है। यह कदम स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, लेकिन इसके साथ ही सैकड़ों परिवारों की आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर पड़ने की आशंका है। दुकानदारों ने इस आदेश को अपनी रोज़ी-रोटी पर सीधा प्रहार बताया है।
कलेक्ट्रेट परिसर में आज जमा हुए चिकन विक्रेताओं ने अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए नारे लगाए, “नहीं चाहिए रियायत, बस ज़िंदगी की सुरक्षा!” 45 वर्षीय रजत शर्मा, जो पिछले 20 वर्षों से चिकन की दुकान चला रहे हैं, इस फैसले से बेहद परेशान हैं। उनका कहना है, “सरकारी पोल्ट्री फार्म में बर्ड फ्लू फैला तो हमारी दुकानें क्यों बंद हों? हम तो निजी पोल्ट्री से सप्लाई लेते हैं, जहां कोई मामला नहीं आया। अब 90 दिन तक हम क्या करेंगे?”
प्रशासन का तर्क है कि बर्ड फ्लू के प्रसार को रोकने के लिए यह कदम आवश्यक है। हालांकि, चिकन विक्रेताओं का सवाल है कि मछली और मटन की दुकानें क्यों नहीं बंद की गईं। विक्रेताओं का कहना है कि उनके निजी पोल्ट्री फार्मों की जांच रिपोर्ट पिछले दो हफ्तों में नेगेटिव आई हैं, फिर भी उनकी दुकानें बंद की जा रही हैं।
चिकन विक्रेताओं में महिलाएं भी बड़ी संख्या में हैं, जो परिवार के साथ इस व्यापार से जुड़ी हुई हैं। सीमा पाटिल, जो अकेले अपनी दुकान चला रही हैं, कहती हैं, “सरकार ‘मेक इन इंडिया’ की बात करती है, लेकिन हमारे हाथों में काम करने का मौका नहीं देती। मैंने कर्ज़ लेकर व्यापार शुरू किया था, अब EMI और बच्चों की फीस कैसे भरूं?”
विक्रेताओं ने प्रशासन से एक वैकल्पिक रास्ता सुझाया है, जिसमें हफ्ते में दो बार मुर्गियों की जांच करवाकर, नेगेटिव रिपोर्ट के आधार पर दुकानें खोलने की अनुमति दी जाए। साथ ही, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकारी पोल्ट्री फार्मों में स्वच्छता मानकों की अनदेखी की जा रही है, जो इस संकट की मुख्य वजह हो सकती है।
जिला प्रशासन की ओर से इस मुद्दे पर अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन दुकानदारों ने चेतावनी दी है कि अगर 48 घंटे के भीतर उनकी मांगों पर कोई निर्णय नहीं लिया गया, तो वे राज्य सरकार तक अपनी आवाज़ उठाएंगे।
स्थानीय नागरिक भी दो ध्रुवों में बंटे हुए हैं। कुछ लोग स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि बीमारी का इलाज़ किसी की रोज़ी-रोटी खत्म करना नहीं हो सकता। इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि क्या बर्ड फ्लू जैसी आपातकालीन स्थिति में सरकार को व्यवसायियों के लिए वित्तीय मदद का प्रावधान भी करना चाहिए? या फिर स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाने के लिए कोई अन्य रास्ता निकलना होगा?
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