73 वें जन्म दिवस विशेष

शख्सियत…
शिक्षाविद् राम लाल बरिहा समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत…
महापुरुषों का जीवन अनुकरणीय माना गया है। किंतु देखने में यह आता है कि जिंदगी के आपा – धापी से भरे इस संसार में जो लोग साधन – संपन्न होते हैं तथा पद ,विद्या और धन की दृष्टि से सामर्थ्यवान होते हैं वे भी व्यवहार में व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए देश समाज और संस्कृति से आंख फेल लेते हैं।
सोनाखान के वीर सपूत शहीद वीर नारायण सिंह के जीवन से ओत – प्रोत ऐसे शख्स जो बिंझवार समाज में एक गरीब परिवार में जन्मा और शिक्षक बनकर समाज के लिए प्रेरक बनकर समाज को एक सूत्र में पिरोकर समाज में एकता का अलख जगा रहे हैं अपने असंगठित समाज को जोड़कर नव जागृति का संदेश दे रहे हैं ।
शिक्षाविद् राम लाल बरिहा समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं।
उनके जीवन में उन्होंने बहुत कुछ समाज हित में कार्य करते हुए समाज को अपना अमूल समय दे रहे हैं उन्हीं के साथ साथ उनके छोटे पुत्र आनंद बरिहा उनके कार्यों में सहयोग करते हुए समाज के लिए अपना कार्य कर रहे हैं ।

सारंगढ़ अंचल के ग्राम सालार में जन्मे रामलाल बरिहा का जन्म जनजाति बिंझवार समाज में 07 जनवरी 1952 को हुआ । वे एक साधारण गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं उनके पिता का नाम स्वर्गीय भागीरथी बरिहा माता का नाम स्वर्गीय श्रीमती जगतीमति बरिहा है ।
राम लाल बरिहा अंग्रेजी में एम ए कर 1973 में शिक्षक बने ।2014 में सेवानिवृत हुए ।
रामलाल बरिहा के जीवन में शहीद वीर नारायण सिंह बहुत महत्व रखते हैं उनके जीवन से प्रभावित रहे हैं। अपने शिक्षकीय कार्य के साथ-साथ समाज को संगठित करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे ।बिंझवार समाज में फैली कुरीतियों को लेकर अंधविश्वासियों को दूर करने समाज के प्रति सजग रहे ।वे अपने जीवन के 72 वें बसंत मना चुके हैं और 73 वर्ष के हैं उन्होंने सारंगढ़ और आसपास के अपने बिंझवार समाज में प्रेरक का कार्य कर रहे हैं ।
रामलाल बरिहा ने अपने समाज को संगठित करने के लिए 2016 में विंध्यवासिनी पुत्र बिंझवार नाम पुस्तक लिखकर अपने समाज को संगठित करने का प्रयास किया और समाज को जोडे वहीं वे लगातार समाज को जोड़ने का प्रयास करते रहे हैं वही सारंगढ़ मुख्यालय के ग्राम
कनकबीरा में अपने कुलदेवी विंध्यवासिनी देवी की मंदिर निर्माण कर लोगों को एक सूत्र में भी पिरोए । विंध्यवासिनी देवी की मंदिर की पहचान आज बढ़ी है और समाज के लोग एक दूसरे से जुड़े हैं।
आज उनकी यह प्रयास समाज के लिए प्रेरक के रूप में जानी जा रही है ।
बिंझवार समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए उन्होंने उनके छोटे पुत्र आनंद बरिहा ने अपने पिता के साथ कदम से कदम मिलाकर उनका साथ दिए। रामलाल बरिहा अब थक गए हैं लकवे के शिकार हैं फिर भी समाज के प्रति उनका सेवा भाव जारी है बिंझवार समाज में आज उन्हें प्रेरक पुरुष के रूप में लोग जानते हैं। शिक्षाविद् समाज सुधारक राम लाल बरिहा अपनी ज्यादा समय समाज के कल्याण और समाज के विकास को लेकर चिंतन करते हुए उन्हें अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं । आज वे 73 वर्ष के हैं पर उनकी सोंच एक युवा से कम नहीं है वे सभी वर्ग से मिलते रहते हैं और उन्हें समाज कल्याण और विकास के कार्यों के लिए प्रेरित करते रहते हैं ।उनकी समाज के प्रति उत्साह आज भी उन्हें ताकत देती है । बिंझवार समाज आज बहुत आगे बढ़ी है । उनके समाज के लोग शिक्षा के साथ साथ सामाजिक कार्यों में भी अपना योगदान दे रहे हैं ।लकवे के कारण वे अधिकतर घर पर रहते हैं पर सामाजिक गतिविधियों में समय निकालकर मिलना जुलना जारी रखे हैं और उनके इस कार्य से सारंगढ़ के सुदूर अंचल के समाज के लोगों को इनका लाभ मिल रहा है ।उनके मार्गदर्शन में बिंझवार समाज अपनी संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं । समाज उनकी सराहना कर रहे हैं।
लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार ,पत्रकार
कोसीर सारंगढ़