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सफलता की कहानी: भूमिहीन महिला उत्तरा राठिया ने गाय पालन से बदली अपनी तकदीर

रायगढ़ (तमनार): रायगढ़ जिले के तमनार विकासखंड के लालपुर ग्राम की उत्तरा राठिया, जो पहले मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थीं, अब अपनी मेहनत और साहस के बल पर गाय पालन से आत्मनिर्भर बन गई हैं। नाबार्ड और हिंडाल्को के बाड़ी कार्यक्रम के तहत मिली वित्तीय सहायता से उन्होंने यह सफर शुरू किया।
उत्तरा, जो एक भूमिहीन परिवार से आती हैं, को जन्मित्रम के कार्यकर्ताओं ने इस कार्यक्रम के तहत गाय पालन के बारे में बताया। इसके बाद उन्होंने इस योजना का लाभ उठाने का निर्णय लिया और उन्हें वित्तीय सहायता सीधे उनके खाते में दी गई। इस सहायता से उत्तरा ने दो गायें खरीदीं और उनके लिए एक सेड भी बनवाया।
आज उनकी दोनों गायें 7-7 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं, जिससे उन्हें कुल 14 लीटर दूध प्राप्त होता है। यह दूध वह 40 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचती हैं, जिससे उन्हें प्रतिदिन 560 रुपये की आय हो रही है। इस प्रकार, महीने भर में उनकी कुल आय 16,800 रुपये तक पहुंच जाती है। इसके अलावा, उनके पास दो बछड़े भी हैं, जिससे भविष्य में और आय की संभावनाएं हैं।
उत्तरा राठिया ने इस सफलता के लिए नाबार्ड, हिंडाल्को और जन्मित्रम कल्याण समिति का दिल से आभार व्यक्त किया है। उनके इस प्रयास से न केवल उनके परिवार को आर्थिक स्थिरता मिली है, बल्कि वह अन्य ग्रामीण महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन चुकी हैं।
बकरीपालन बना दिव्यांग गुरुदेव राठिया के लिए आत्मनिर्भरता का जरिया
रायगढ़ (तमनार): ग्राम लालपुर, विकासखंड तमनार, जिला रायगढ़ के गुरुदेव राठिया, जो भूमिहीन होने के साथ-साथ दिव्यांग भी हैं, ने नाबार्ड और हिंडाल्को की बाड़ी विकास परियोजना के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त किया है। मई 2024 में इस परियोजना के तहत उन्हें 42,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी, जिससे उन्होंने 3 बकरियां खरीदीं और उनके लिए शेड बनवाया।
छह महीने के भीतर, उनके पास बकरियों की संख्या बढ़कर 12 हो गई, जिनकी बाजार में कीमत लगभग 80 से 90 हजार रुपये आंकी जा रही है। गुरुदेव, जो दिव्यांगता के कारण मजदूरी नहीं कर पाते थे, अब बकरीपालन के माध्यम से अपनी आजीविका कमा रहे हैं।
गुरुदेव राठिया ने जन्मित्रम और उनके कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया, जिन्होंने उनके घर पर आकर उन्हें नाबार्ड-हिंडाल्को बाड़ी परियोजना का लाभ दिलाया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया है, जिसके लिए वे नाबार्ड, हिंडाल्को और जन्मित्रम कल्याण समिति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
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