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अरावली पर अवैध खनन का भंवर, 15 साल में 50 हजार करोड़ का घपला, पूर्व डीएफओ ने किया खुलासा

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अलवर
 राजस्थान के अलवर जिले में स्थित अरावली की पहाड़ियों में सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद भिवाड़ी, टपूकड़ा, तिजारा और किशनगढ़बास क्षेत्र में अवैध खनन जारी है. लगातार हो रहे अवैध खनन से कई पहाड़ियों का नामो-निशान मिट चुका है. खनन माफिया इतने हावी हो गए हैं कि डीएफओ, पुलिस और प्रशासन की टीम पर पथराव और फायरिंग तक कर देते हैं. पूर्व में अलवर में डीएफओ रहे पी. काथिरवेल ने अपने द्वारा किए गए अवैध खनन के आकलन में बताया कि भिवाड़ी क्षेत्र में खनन माफियाओं ने पिछले 15 वर्षों में करीब 50 हजार करोड़ रुपये का अवैध खनन कर लिया है. उनके खिलाफ आज तक कोई सख्त कार्य योजना नहीं बनी है.

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तत्कालीन डीएफओ ने अलवर में पदस्थ रहते हुए राज्य सरकार और वन विभाग को पत्र लिखा था, जिसमें बताया गया कि जिले के टपूकड़ा क्षेत्र के चूहड़पुर, उधनवास, उलावट, ग्वालदा, इंदौर, सारे कलां, सारे खुर्द, खोहरी कलां, मायापुर, छापुर, नाखनौल, कहरानी, बनबन, झिवाणा और निंबाड़ी में हरियाणा के माफिया भी व्यापक स्तर पर फैले हुए हैं. विभागीय रिपोर्ट के अनुसार इस इलाके के करीब एक हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पहाड़ समाप्त हो चुके हैं. यहां पहाड़ खत्म होने के कगार पर पहुंचने के बाद माफियाओं ने तिजारा और किशनगढ़बास में अपना कारोबार फैलाया और नीमली, बाघोर, देवता, मांछा सहित अन्य क्षेत्रों की पहाड़ियों में दिन-रात खनन शुरू कर दिया.

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डीएफओ अलवर वानिकी पद पर रहते हुए पी. काथिरवेल ने दिसंबर 2013 और जनवरी 2014 में राजस्थान सरकार के वन विभाग के पीसीसीएफ और सीसीएफ को पत्र लिखकर मांग की थी कि अवैध खनन से हुए नुकसान की जांच के लिए एक हाई एम्पावर्ड कमेटी का गठन किया जाए. उन्होंने कहा था कि अवैध खनन से जिले की पहाड़ियों को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. उनके व्यक्तिगत आकलन के अनुसार, भिवाड़ी क्षेत्र में ही पिछले 15 वर्षों में करीब 50 हजार करोड़ रुपये की संपदा लूटी जा चुकी है. यदि यही हाल रहा तो अगले तीन वर्षों में इस क्षेत्र की पहाड़ियां पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी और इसके बाद अलवर शहर के आसपास की पहाड़ियों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी.

डीएफओ ने कार्य योजना भी तैयार की थी

तत्कालीन डीएफओ के अनुसार वर्ष 1998 से 2003 के बीच प्रतिदिन करीब एक हजार वाहनों की आवाजाही के आधार पर लगभग 6 हजार करोड़ रुपये का अवैध खनन हुआ. इसी तरह 2003 से 2008 के बीच दो हजार वाहनों से करीब 12 हजार करोड़ और 2008 से 2013 के बीच पांच हजार वाहन प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान किया गया. अरावली की पहाड़ियों को बचाने के लिए डीएफओ ने एक कार्य योजना भी बनाई थी, जिसके तहत उन्होंने उच्च अधिकारियों को लिखे पत्र में खनन माफियाओं से निपटने के लिए 11 करोड़ रुपये स्वीकृत करने की मांग की थी.

नकेल कसने के लिए कड़े फैसले लेने की जरूरत

इस राशि से वन विभाग की स्वतंत्र पुलिस फोर्स, वाहन, नई चेक पोस्ट, तथा पहाड़ी और खनन क्षेत्रों में पक्की दीवारें बनाने का प्रस्ताव था. तत्कालीन डीएफओ के अनुसार, अवैध खनन से जुड़े लोगों के पास भारी मात्रा में विस्फोटक, अवैध हथियार और बड़ी संख्या में मैनपावर है, जिनसे निपटना वर्तमान संसाधनों से लगभग नामुमकिन है. उन्होंने इस पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल प्रभाव से कड़े फैसले और ठोस रणनीति अपनाने की मांग करते हुए उच्चाधिकारियों को पत्र लिखे थे.

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