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गीता—सर्वश्रेष्ठ शास्त्र और आज के समय की आवश्यकता- ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

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“श्रीमद्भगवद्गीता की राह, वाह ज़िन्दगी, वाह!”  के सात दिवसीय प्रवचन सत्र में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी गीता के 18 अध्यायों के रहस्यों का करेंगी गहन अनावरण

ब्रह्माकुमारीज़, प्रभु-पसंद भवन, सारंगढ़ का आयोजन

सारंगढ़, फुलझरियापारा।
ब्रह्माकुमारीज़ प्रभु पसंद भवन में आयोजित सात दिवसीय आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला “श्रीमद्भगवद्गीता की राह, वाह ज़िन्दगी, वाह!” का शुभारंभ उत्साहपूर्ण वातावरण में हुआ। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी (बिलासपुर) ने प्रतिदिन शाम 5:30 से 7:30 बजे तक चलने वाले इस आध्यात्मिक ज्ञान-उत्सव पहले दिन उपस्थित साधकों को गीता के गूढ़, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और अत्यंत व्यावहारिक रहस्यों से अवगत कराया।

गीता—सर्वश्रेष्ठ शास्त्र और आज के समय की आवश्यकता

दीदी ने बताया कि श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक है—क्योंकि गीता किसी धर्म विशेष की नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के संवाद का दिव्य संहिता है। यह सर्व शास्त्रों में शिरोमणि, मनोविज्ञान का अति महत्वपूर्ण ग्रंथ, जीवन जीने की कला का अद्भुत मार्गदर्शक तथा वेद-उपनिषदों का सार है।

उन्होंने कहा कि आज तनाव, चिंता, अस्थिरता और उलझनों से भरे समय में गीता का ज्ञान एक जीवनदायी औषधि की तरह है। जैसे आयुर्वेद रोग को जड़ से मिटाता है, वैसे ही गीता मन के रोगों—क्रोध, लोभ, भय, ईर्ष्या, मोह—को समाप्त करती है और मनुष्य को आत्मिक बल, स्पष्ट चिंतन और निर्णय क्षमता प्रदान करती है।

गीता का प्रथम पाठ—आत्मा की पहचान

दीदी ने कहा कि गीता का पहला महावाक्य मनुष्य को यह अनुभूति कराता है कि मैं शरीर नहीं, बल्कि इस शरीर में रहने वाली अमर, अजर, अविनाशी आत्मा हूँ।

शस्त्र मुझे काट नहीं सकते, अग्नि मुझे जला नहीं सकती और वायु मुझे उड़ा नहीं सकती—यह समझ जीवन में स्थिरता और निडरता की नींव डालती है।

स्थिर बुद्धि का महत्व—सफलता का आधार

वक्ता ने स्पष्ट किया कि कामना पूरी न होने पर उत्पन्न क्रोध मनुष्य को विवेकहीन कर देता है। क्रोध से विवेक (decision power) नष्ट होता है और फिर गलत निर्णय जीवन में भ्रम, तनाव और संकट ला देते हैं। इसलिए मनुष्य को अपनी इच्छाओं, अपेक्षाओं और प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण रखना सीखना चाहिए।

सफलता का वास्तविक अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा—“सफल वह नहीं जिसने केवल धन, पद या नाम पाया हो, बल्कि वह है जिसने अपने जीवन से अधिक से अधिक लोगों को *खुशी, सुकून और प्रेरणा* प्रदान की हो।

वर्तमान समय—घर-घर में महाभारत

दीदी ने बताया कि वर्तमान समय चुनौतियों से भरा हुआ है। पारिवारिक असंतोष, सामाजिक अस्थिरता और मानसिक तनावों ने जीवन को जटिल बना दिया है। यही कारण है कि आज हर परिवार, हर व्यक्ति के जीवन में मनोयुद्ध (Inner Battle) चल रहा है।

उन्होंने कहा—“वर्तमान समय महाभारत काल जैसा है—जहाँ अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष निरंतर चल रहा है। गीता हमें इस संघर्ष से विजयी होकर निकलने की शक्ति देती है।

महाभारत का प्रतीकात्मक अर्थ—अहिंसक मनोयुद्ध

दीदी ने समझाया कि महाभारत युद्ध वास्तव में मन के विकारों से लड़ाई है।

पांडव सद्गुणों और शक्तियों के प्रतीक हैं—स्थिर बुद्धि, धैर्य, आत्मबल, अनुशासन, सहयोग आदि।

कौरव विकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं—काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, आलस्य, भय।

उन्होंने दुर्योधन के चरित्र को समझाते हुए बताया—“दुर्योधन जानता था कि धर्म क्या है, पर चल नहीं पाता था; और जानता था अधर्म क्या है, पर छोड़ नहीं पाता था। यही आज की मानव कमजोरी है।”

कृष्ण का सारथित्व—मार्गदर्शन का दिव्य संदेश

दीदी ने कहा कि जैसे श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर उसके मन के भ्रम को दूर किया, वैसे ही आज परमात्मा हमारे सारथी बनकर हमें सही दिशा दिखाते हैं। बस हमें अर्जुन की तरह ‘हाँ जी’ कहकर सीखने और बदलने का संकल्प लेना है।

ब्रह्माकुमारी कंचन दीदी  का आह्वान

ब्रह्माकुमारीज़ प्रभु पसंद भवन, सारंगढ़ की ओर से सेवा केंद्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी कंचन दीदी ने नगरवासियों को आव्हान किया कि वे अपने परिवार सहित इस सात दिवसीय ज्ञान अमृत का लाभ उठाएँ। यह कार्यक्रम न केवल आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है, बल्कि जीवन में संतुलन, शांति और सद्भाव स्थापित करने का भी सूत्र है।

इस अवसर पर रायगढ़ सेवाकेंद्र से ब्रह्माकुमारी राधिका दीदी….. सहित नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नीलू बहन ने किया।

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