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आचार्य पांडेय बोले — शिव की पूजा सर्वाधिक इसलिए होती हैसंहार में सृजन और कृपा का संदेश देते हैं भगवान भोलेनाथ

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भगवान शंकर संहार व अनुग्रह के देवता, इसलिए सर्वाधिक होती है पूजा : पांडेय

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स्लग-शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन ब्यास आचार्य ने सुनाई शिवलिंग उत्पत्ति प्राकट्य की कथा
जांजगीर-चांपा। ग्राम बनारी में आयोजित श्री शिव महापुराण की कथा में गुरुवार 9 अक्टूबर को कथा प्रवक्ता मनोज पांडे ने शिवलिंग के उत्पत्ति प्राकट्य की कथा, ब्रह्मा जी की अपूज्यता का कारण, भस्म धारण विधि भस्म माहात्म्य रुद्राक्ष धारण विधि रुद्राक्ष माहात्म्य आदि की चर्चा की।
सृष्टि के कार्य में सृष्टि स्थिति और विनाश इन तीन कार्यों के लिए पर ब्रह्म ने ब्रह्मा विष्णु और शिवजी का स्वरूप धारण किया है। अन्य देवताओं के केवल मूर्ति की पूजा होती है लेकिन शिव जी के मूर्ति और लिंग दोनों की पूजा होती है । शिवजी संहार के देवता हैं लेकिन अनुग्रह के भी देवता इसीलिए अन्य सभी देवताओं की तुलना में इनके सर्वाधिक मंदिर हैं और सर्वाधिक पूजा इन्हीं की होती है। भस्म धारण का सभी वर्णों जातियां लिंग सबको अधिकार है परंतु भस्म रुद्राक्ष तुलसी माला आदि धारण करने के बाद मांस मदिरा आदि के सेवन से बचना चाहिए दुर्गंध तामसी भोजन से बचना चाहिए तब सभी को अधिकार है और यदि भोजन में आचरण में संयम न हो तभी उसे व्यक्ति को भस्म रुद्राक्ष या तुलसी माला आदि धारण करने से बचना चाहिए। किसी भी वर्ण या जाति के प्रति कोई पूर्वाग्रह या दुराग्रह हमारे व्यास जी के मन में नहीं है। हमारे पवित्र धार्मिक प्रतीकों को पवित्र लोग धारण कर सकें इसकी अपेक्षा की जाती है। शिवजी सगुन भी हैं और निर्गुण भी इसलिए उनके लिंग और वेर अर्थात मूर्ति दोनों की पूजा होती है अन्य देवताओं के केवल सगुन स्वरूप मूर्ति मात्रकी पूजा होती है। कथा श्रवण करने जगदीश तिवारी, विजय तिवारी, सत्यप्रकाश तिवारी, कृष्णकांत तिवारी, राकेश तिवारी, रमाकांत तिवारी, राजेश तिवारी, कमलकांत तिवारी, माधव प्रसाद पाण्डेय, जीवराखन तिवारी, राकेश पाण्डेय, लक्ष्मीकांत पाण्डेय, मनमोहन दुबे, गोरेलाल मिश्रा, रामेश्वर साव, बोधराम धीवर आदि उपस्थित थे।

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