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“मुखौटे हटते ही हालात बदल जाएंगे” – सीमा पाण्डेय की कविता ने बटोरी तालियाँ

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लक्ष्मी नारायण लहरे की रिपोर्ट

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मुखौटे हटते ही हालात बदल जायेंगे।
एक चेहरे के कई रंग नजर आयेंगे।।
कोई साथी नहीं उस रब के सिवा तेरा ।
गर्दिशे वक्त में सब तुझको छोड़ जायेंगे।। ….सीमा पाण्डेय
हिंदी पखवाड़ा के अंतिम दिनों में कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन

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रायपुर।भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय पंडरी रायपुर में हिंदी पखवाड़े कार्यक्रम की समाप्ति पर साहित्य सृजन संस्थान के सहयोग से कवि सम्मेलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कवि सम्मेलन कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती सुनीता राजपूत,मंडल प्रबंधक रही।जिसमें कवियों डॉ.रामेश्वरी दास,सीमा पाण्डेय,उमेश कुमार सोनी एवं दीपक ऋषि झा ने अपनी रचनाओं का पाठ कर भरपूर तालिया बटोरी।कार्यक्रम का सफल संचालन श्री एन. जे.राव ने किया।
कार्यक्रम में जीवन बीमा निगम के सुधीर मूलतकर,श्रीमती एस वी माधवी राव,सुमन तिर्की,धनंजय पांडे,संध्या राज,अनुरोध शर्मा,हिंदी अधिकारी आलोक धुरिया,रायपुर डिवीजन इंश्योरेंस एम्प्लॉईज एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश पराते एवं साहित्य सृजन संस्थान के अध्यक्ष वीर अजीत शर्मा उपस्थित रहे।निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा कवि सम्मेलन का भरपूर आनंद लिया एवं तालियों से हॉल गूंजता रहा।

विदित रहे कि जीवन बीमा निगम द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने वाले कवि सम्मेलन कार्यक्रम में साहित्य सृजन संस्थान के कवियों को विगत चार वर्षों से निरंतर काव्य पाठ हेतु आमंत्रित किया जा रहा है।
कवि सम्मेलन के कवियों द्वारा किए काव्य पाठ के कुछ अंश …
मुखौटे हटते ही हालात बदल जायेंगे।
एक चेहरे के कई रंग नजर आयेंगे।।
कोई साथी नहीं उस रब के सिवा तेरा ।
गर्दिशे वक्त में सब तुझको छोड़ जायेंगे।।
सीमा पाण्डेय
हिंदी मेरी नहीं बची तो,
क्या जीवन में पहचान बचेगा…
नहीं बचे जब मीरा के पद,
सूर के अजब अनोखे रंग।
तुलसी के मानस के गोते,
केशव की कविता का ढंग।
मतिराम और देव बिहारी
मतवाला रसखान बचेगा..
हिंदी मेरी नहीं बची तो क्या जीवन में पहचान बचेगा…
     डॉ.रामेश्वरी दास
मैं नन्दनवन क़ी निर्मात्री मैं भारत माँ क़ी बिन्दी हूँ l
मैं मानवता क़ी पोषक हूँ इसलिये आज तक ज़िंदी हूँ l
लानत है उन ग़द्दारों पर जो अंग्रेज़ी का सपना देखें–
मैं शान्ति क्रांति क़ी युगसाधक मैं हिंदुस्तान क़ी हिन्दी हूँ l

उमेश कुमार सोनी ‘नयन’
खो गयी मीरा कहीं और गुम हुए घनश्याम  हैँ l
हो रहा गलियों में पल पल प्रेम क्यूँ बदनाम है l

बेर शबरी के भी झूठे प्रेम से वह कहाँ गए
प्रीत की इक नेक गाथा राम जी बतला गए l
रंग पश्चिम का उड़ा और रंग बदली ज़िन्दगी
वासना की राह में क्यों नौजवान भरमार गए l
जाने कैसा होने वाला इश्क़ का अंजाम है l
    दीपिका ऋषि झा
कवियों ने हिंदी भाषा में संदेश देते हुए चटकारे लगाए और कार्यक्रम में चार चांद लग गए ।

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