छत्तीसगढ़

एक किलकारी घर में गूंजी आंगन – आंगन महज उठा परी से प्यारी बिटिया आयी पिता का मन लहक उठा … अदिति वर्मा

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लक्ष्मीनारायण लहरे की रिपोर्ट

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साहित्य सृजन संस्थान द्वारा काव्य संध्या का हुआ आयोजन…
” साहित्यकारों का मंच पर हुआ सम्मान साहित्य की बहती रही अविरल धारा “

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रायपुर। रायपुर विमतारा हॉल में साहित्य सृजन संस्थान के तत्वावधान में रविवार को  ‘काव्य संध्या’ कार्यक्रम का आयोजन सम्पन्न हुआ ।
कार्यक्रम के  मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार इतिहासकार और पूर्व आईएएस अधिकारी संजय अलंग रहे कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष वीर अजीत शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप  वरिष्ठ पत्रकार आशिफ इकबाल,वरिष्ठ साहित्यकार शील कांत पाठक,राममूरत शुक्ला,सुरेन्द्र रावल,उपस्थित रहे।कार्यक्रम का संचालन श्रीमती सीमा पाण्डेय सीमा ने किया।संस्था के संयोजक उमेश कुमार सोनी नयन ने उपरोक्त जानकारी प्रदान की।

इस अवसर श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान श्रीमती दीपिका ऋषि झा, श्रीमती पूर्वा  श्रीवास्तव एवं श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान से डॉक्टर चंद जैन अंकुर को सम्मानित किया गया।इसी प्रकार उपस्थित श्रोताओं में लॉटरी पद्धति से दो श्रोताओं का भी सम्मान किया गया।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाईं। बानगी के तौर पर कुछ रचनाओं के अंश नीचे प्रस्तुत है।
इनके अलावा  डॉ. सिद्धार्थ श्रीवास्तव, अनामिका शर्मा,किशोर लालवानी, हबीब खान समर बागबाहरा,अजय सोनी,,विक्रम शारदा,सुनील शर्मा,विजया ठाकुर,,वीरेंद्र शर्मा,,विनय अन्थवाल,,उमाशंकर मिश्रा बिलासपुर,आर डी अहिरवार,मनोहर सिंघ, रमनीत कौर,संजय पांडेय, डॉ.अर्चना पाठक,सुरेन्द्र रावल,वीरेंद्र शर्मा “अनुज”,चैतन्य गोपाल बिलासपुर,शिव शंकर गुप्ता,आशा मानव,डॉ.साधना कसार,अशोक शर्मा महासमुंद,संतोष शर्मा,उत्तम देवहरे,विद्या भट्ट,नेहा त्रिवेदी,सफदर अली,यशवंत यदु यश,विनोद कुमार,सुश्री कुमुद लाड,आदि ने काव्य-पाठ कर वाहवाही लूटी।

वही काब्य संध्या में कवियों की साहित्य की अविरल प्रवाह बहती रही समाज को संदेश देते रहे विमतारा हॉल साहित्य की पुंज से महक उठी । वही श्रेष्ठ काब्य पाठ के लिए पूर्वा श्रीवास्तव का सम्मान और श्रोता के लिए विनोद कुमार एवं डॉ आर के अग्रवाल का सम्मान किया गया
एक किलकारी घर में गूंजी
आंगन आंगन महक उठा
परी से प्यारी बिटिया आयी
पिता का मन लहक उठा
           अदिति वर्मा
मेरे इस जनाजे को कलम से सजा देना
पढ़ के मेरी ग़ज़ल मुझे आखरी विदा देना

सफ़ेद पन्नों में नीला लफ्ज़ खूब जंचता है
ज़रा मेरे कफन में थोड़ी स्याही लगा देना
चैतन्य गोपाल
बिलासपुर
ये जानते हैं जो भी हैं आईनादार लोग
” उजले लिबास में हैं कई दाग़दार लोग “

अपने लिए तो रखते हैं फूलों की आरज़ू
ग़ैरों के रास्ते में बिछाते हैं ख़ार लोग
     … सुखनवार हुसैन
ये मेले हैँ, तमाशे हैँ जहाँ देखो जिधर देखो
सुकूँ की खोज में  तो आज हर इंसान लगता है

पूर्वा श्रीवास्तव

खिलने लगी हैं ज़हन में शाम से.. यादें, पारिजात -सी
झरने लगी हैं यादें.. आहिस्ता-आहिस्ता पारिजात- सी..
__ विद्या भट्ट
जिन्दगी को कुछ अपनी *सरल*कीजिए* ।
*है सघन ये बहुत अब तरल कीजिए* ।।

सीमा पाण्डेय

बस्ती जला बैठा गुमान देखो
कोई है नही बाकी मकान देखो

पैरों तले छाले न देख मेरे
है देखना तो इम्तिहान देखो

रोशन सुरेश
अंधे लोग अंधा तंत्र                                        अंधी सोच अंधा मंत्र                                    सो रहे है इसी अंधकार में सभी                     की जैसे ख़त्म न होगी ये रात कभी                 
                हिना लखिसरानी
उठा लाये हैं साज़ों को तराना छोड़ आये हैं l
लबों पर उनके गीतों का ख़ज़ाना छोड़ आये हैं l
नयी फसलें उगाने का जतन करना है तुमको ही –
मशीनी दौर में हम हल चलाना छोड़ आये हैं l
उमेश कुमार सोनी ‘नयन’

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