छत्तीसगढ़

संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी द्वारा धान परती प्रणाली प्रबंधन विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ जशपुर जिले के पथलगांव प्रखंड ग्राम-कुमकेला

भा.कृ.अ.प. का कृषि प्रणाली का पहाड़ी एवं पठारी अनुसंधान केन्द्र, राँची द्वारा पूर्वी क्षेत्र में धान-परती प्रणाली के अंतर्गत कृषि विधियों के मूल्यांकन परियोजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति के किसानों के लिए संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी द्वारा धान परती प्रणाली प्रबंधन विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 17 से 19 अक्टूबर, 2024 तक किया जा रहा है। कार्यक्रम का उदघाटन ग्राम कुमकेला की सरपंच महोदया श्रीमती फूलमती सिदार ने किया उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारत सरकार की अनुसूचित जाति उप योजना के अंतर्गत चलाये जा रहे प्रशिक्षण से किसान अधिक फायदे ले रहे हैं एवं कृषि के नए-नए तकनीकों से जुड़कर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं एवं जीविकोपार्जन में वृद्धि हो रही है एवं संरक्षण कृषि में यांत्रिकीकरण की आवश्यकता जतायी। उद्घाटन सत्र में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद रांची केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति उप योजना एवं अनुसूचित जनजाति के प्रभारी डा. बाल कृष्ण झा, प्रमुख वैज्ञानिक एवं परियोजना के सह-अन्वेषक ने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में एकल फसल, धान की खेती किसान करते हैं एवं रबी और गरमा फसलों की खेती नहीं करते जिससे किसानों को खेती से पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। उन्होंने बताया कि संस्थान में विगत 8 वर्षों के संरक्षित कृषि आधारित द्वारा धान-परती प्रणाली पर किए गए अनुसंधान से धान की कटाई के पश्चात संरक्षण तकनीक द्वारा शून्य जुताई से मसूर, तीसी, चना, सरसों की फसलों में अवशेष प्रबंधन के साथ-साथ जल संरक्षण की तकनीक द्वारा खेतों की न्यूनतम जुताई कर बची हुई नमी का उपयोग कर दलहनी एवं तिलहनी फसलों को आवश्यकतानुसार एक-दो हल्की सिंचाई से रबी एवं जायद फसलों की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में संरक्षण कृषि तकनीक द्वारा खेती धान-परती प्रणाली के प्रबंधन में काफी लाभदायक होगी एवं इसे अपनाकर किसान अपनी आमदनी दोगुनी कर सकते है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डी अमित कुमार सिन्हा ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि को नई-नई तकनीक से जुड़ने से किसानों में खुशहाली आएगी। कार्यक्रम में उपस्थित डी चंद्रमणि देव ने किसानों को फसल तीव्रता बढ़ाने पर बल दिया और कहा कि यह तभी संभव है कि किसान धान फसल की कटाई के बाद दलहन या तिलहन फसल की बुवाई करें। उद्घाटन सत्र का धन्यवाद ज्ञापन धान-परती प्रणाली के अंतर्गत कृषि विधियों के मूल्यांकन परियोजना के अनुसन्धान सहायक श्री सौम्य सुन्दर तिवारी ने किया।

प्रशिक्षण के तकनीकी सत्र में, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, कुनकुरी, जशपुर के प्राध्यापक डॉ चंद्र मणि देव (सस्य विज्ञान) ने किसानों को धान-परती भूमि में फसलों के जल प्रबंधन पर विशेष जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि जल प्रबंधन की उन्नत तकनीक को अपनाकर किसान अधिक पैदावार ले सकते हैं। साथ ही धान कटाई से पूर्व दलहनी फसलों एवं तिलहनी फसलों के बीजों की उतेरा विधि से धान की खड़ी फसलों में ही छिड़काव से खेतों में शेष नमी के सदुपयोग से अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है। कृषि महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका (पौध रोग विज्ञान) डॉ वंदना शुक्ला ने धान के अवशेष प्रबंधन द्वारा मशरूम उत्पादन की प्रस्तुतीकरण के माध्यम से तकनीकी जानकारी दी। साथ ही साथ फसलों में लगने वाली रोग व्याधियों की जानकारी देते हुए उनके नियंत्रण की भी विस्तृत जानकारी प्रदान की। कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, कुनकुरी, जशपुर के अधिष्ठाता डी अमित कुमार सिन्हा ने धान की परती भूमि में फसल चक्र द्वारा वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करते हुए खेती से आय में वृद्धि करने की जानकारी प्रस्तुतीकरण के माध्यम प्रदान से की। साथ ही फसलों की नवीन किस्मों की भी जानकारी दी। कृषि महाविद्यालय से सुश्री अनुपमा लकड़ा लेब तकनीशियन ने धान परती प्रणाली प्रबंधन के अंतर्गत फसल चक्र में सब्जी उत्पादन को सम्मिलित करने हेतु किसानों को संक्षिप्त जानकारी प्रदान की।

कृषि विज्ञान केंद्र, जशपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ राकेश भगत ने धान-परती भूमि में फसल अवशेष द्वारा वैज्ञानिक विधि से केंचुआ खाद उत्पादन की तकनीकी जानकारी के साथ फसलों में पोषक तत्त्व प्रबंधन की विस्तृत जानकारी प्रदान की।

इस प्रशिक्षण में जशपुर जिले के पथलगांव प्रखंड ग्राम कुमकेला से 50 किसानों ने भाग लिया। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्हें संरक्षण खेती का महत्त्व, सिद्धांत एवं कृषि क्रियाये तथा धान-परती भूमि के प्रबंधन पर विस्तृत एवं प्रायोगिक जानकारी दी गयी। इसके साथ-साथ किसानों को धान-परती भूमि में खर-पतवार नियंत्रण, मृदा एवं पोषक तत्व प्रबंधन, फसल चक्र द्वारा आय में वृद्धि के गुर सिखाये गये। किसानों को एकीकृत व्याधि एवं कीट नियंत्रण पर विशेष जानकारी प्रदान की गयी। साथ ही उन्हें वैकल्पिक आय सूजन करने हेतु फसल अवशेष से मशरूम की खेती एवं केंचुआ खाद उत्पादन की प्रायोगिक जानकारी भी प्रदान की जायेगी।

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