सारंगढ़ - बिलाईगढ़छत्तीसगढ़धर्म

ग्राम्य देवी के रूप में विराजमान हैं सिद्धिदात्री मां कौशलेश्वरी देवी

ग्राम्य देवी के रूप में विराजमान हैं सिद्धिदात्री मां कौशलेश्वरी देवी 



आस्था के सैकड़ो द्वीप किये गए प्रज्ज्वलित सप्तमी और अष्ठमी पर भक्तों का उमड़ता है जनसैलाब

लक्ष्मी नारायण लहरे (साहिल)

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कोसीर। कोसीर में विराजमान सिद्धिदात्री मां कौशलेश्वरी देवी की मंदिर में कुवांर नवरात्री पर आस्था के दीप प्रज्जवलित किये किये गए हैं,और माता के दर्शन के लिए दूर दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर रहे मन्दिर की मान्यता है माता के दर्शन मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते है और सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है,नवरात्रि के सप्तमी और अष्ठमी को मन्दिर में माता के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती जो देर रात तक चलती रहती है ,

मन्दिर का भगौलिक स्थिति और इतिहास

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सारंगढ़ जिले के सबसे बडे गाॅव कोसीर सारंगढ विकास खण्ड से महज 16कि मी दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से ग्राम कोसीर का बसाहट सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के अंतिम छोर पर है। उत्तर दिशा में महानदी है जो जांजगीर चाम्पा एवं सक्ती सरहद मुख्यमार्ग को जोडती है और वर्तमान में नये जिले बनने के बाद यह गांव अब सभी ओर से मध्य में है ।

ग्राम कोसीर ऐतिहासिक नगरी है शासन प्रशासन की नजरों से अछूता रहा है इतिहास पर गौर किया जाये तो ग्राम कोसीर ऐतिहासिक गांव है जहां सत्रहवीं शताब्दी की मूर्ती की अवशेष यत्र तत्र बिखरे पडे हैं। कोसीर के मध्य में मां कौशलेश्वरी देवी की मंदिर स्थित है, कोसीर को ग्रामीण पर्यटन के रूप में स्थापित किया जा सकता है पर्यटन की आपार संभावनायें है लेकिन अब सारंगढ़ नए जिले बनने के बाद उम्मीदों बढ़ गई है । शासन प्रशासन और साहित्यकारों के नजर से कोसों दूर है। छत्तीसगढ के बुद्धजीवी साहित्यकारों को अध्ययन करने की आवश्यकता है यही नहीं रायगढ जिला के साहित्य में कोसीर के मंदिर का जिक्र भी नही होता जबकि कोसीर की मां कौशलेश्वरी देवी की मंदिर ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है।

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